आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट: भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में क्या बताती है?
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और भावी दिशा पर कई रोचक प्रकाश डालती है। यह रिपोर्ट न केवल आरबीआई की वित्तीय स्थिति बताती है, बल्कि देश की मौद्रिक नीति, विदेशी मुद्रा भंडार और सोने के भंडार जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा करती है। चलिए इस रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं पर एक नजर डालते हैं।
बैलेंस शीट में मजबूत वृद्धि
आरबीआई की बैलेंस शीट वित्त वर्ष 2023-24 में 11.08% की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ 70.47 लाख करोड़ रुपये हो गई है। यह वृद्धि विदेशी निवेश, सोना और ऋण एवं अग्रिमों में क्रमशः 13.90%, 18.26% और 30.05% की बढ़ोतरी के कारण हुई है। बढ़ी हुई बैलेंस शीट आरबीआई की वित्तीय शक्ति और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को बढ़ाएगी।
रिकॉर्ड लाभांश भुगतान
एक बड़ी खबर यह है कि आरबीआई ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये का अब तक का सबसे अधिक लाभांश भुगतान मंजूर किया है। पिछले वर्ष 2022-23 में यह राशि 87,416 करोड़ रुपये थी। ऐसा पहली बार हुआ है जब आरबीआई ने सरकार को 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक लाभांश दिया है। यह अतिरिक्त धनराशि सरकार को अपने विकास एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।
विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा
रिपोर्ट से पता चलता है कि 31 मार्च 2024 तक विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, सोना और भारत के बाहर वित्तीय संस्थानों को दिए गए ऋण और अग्रिम कुल परिसंपत्तियों का 76.69% थे। एक साल पहले 31 मार्च 2023 तक यह अनुपात 73.92% था। इस वृद्धि ने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को और मजबूत किया है। विदेशी मुद्रा भंडार भारत की आयात जरूरतों को पूरा करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार देश की आर्थिक सुरक्षा को भी बढ़ाता है।
सोने का भारी भंडार
आरबीआई के पास 822.10 मीट्रिक टन सोना है, जिसमें से 308.03 मीट्रिक टन सोना नोटों के समर्थन के लिए रखा गया है। यह सोने का भंडार देश की आर्थिक सुरक्षा और विश्वसनीयता को बढ़ाता है। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सोने के मूल्य में 16.94% की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि सोने की मात्रा में इजाफे, सोने की बढ़ी हुई कीमतों और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्यह्रास के कारण हुई है।
मुद्रा जारी करने की क्षमता बढ़ी
आरबीआई का एक प्रमुख कार्य मुद्रा जारी करना है और रिपोर्ट बताती है कि बैलेंस शीट में देयताओं के पक्ष में जारी नोटों में 3.88% की वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि देश की बढ़ती आबादी और आर्थिक गतिविधियों के साथ बढ़ती मुद्रा की मांग को दर्शाती है। आरबीआई की बढ़ी हुई क्षमता से मुद्रा प्रबंधन और नकदी प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
मौद्रिक नीति और रिज़र्व प्रबंधन पर नज़र
आरबीआई की बैलेंस शीट मौद्रिक नीति और रिजर्व प्रबंधन के उद्देश्यों को भी दर्शाती है। जमाओं और अन्य देयताओं में क्रमशः 27.00% और 92.57% की वृद्धि इस दिशा में आरबीआई की गतिविधियों को दर्शाती है। केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीतियां और रिजर्व प्रबंधन देश की आर्थिक स्थिरता और विकास को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आरबीआई की क्षमता और महत्व बढ़ा
समग्र रूप से, आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि केंद्रीय बैंक की क्षमता और महत्व पिछले वर्ष की तुलना में काफी बढ़ा है। बैलेंस शीट में वृद्धि, अधिक लाभांश भुगतान, विदेशी मुद्रा भंडार और सोने के भंडार में इजाफा जैसे कारक आरबीआई को भारतीय अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने और उसे स्थिरता प्रदान करने में मदद करेंगे।
वैश्विक आर्थिक स्थिति का असर
हालांकि, आरबीआई की यह रिपोर्ट वैश्विक आर्थिक परिदृश्य की उथल-पुथल को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन में लॉकडाउन और महामारी के बाद की आर्थिक चुनौतियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। इन वैश्विक खिंचावों का असर भारत पर भी पड़ा है और आगे भी पड़ेगा। मुद्रास्फीति का बढ़ता स्तर, उच्च ऊर्जा और कच्चे माल की कीमतें और मंदी का खतरा कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनका सामना भारत को करना पड़ सकता है।
आरबीआई की भूमिका महत्वपूर्ण
ऐसे समय में आरबीआई की भूमिका और महत्व और भी बढ़ जाता है। केंद्रीय बैंक को अपनी मौद्रिक नीतियों और रिजर्व प्रबंधन को इन वैश्विक चुनौतियों के अनुरूप बनाना होगा। मुद्रास्फीति पर काबू पाना, विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाना और वित्तीय स्थिरता बनाए रखना आरबीआई के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, आरबीआई को सरकार के विकास एजेंडे का भी समर्थन करना होगा और देश के विकास दर को बनाए रखने में योगदान देना होगा।
आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती और विकास की क्षमता को दर्शाती है। हालांकि, वैश्विक आर्थिक स्थितियां चुनौतीपूर्ण बनी हुई हैं और आरबीआई को इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। केंद्रीय बैंक की नीतियां और फैसले भारत के भविष्य के आर्थिक विकास को आकार देंगे। देश की प्रगति के लिए आरबीआई की सही नीतियां और दूरदर्शिता महत्वपूर्ण होगी।
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