नई दिल्ली। भारत के स्वप्निल कुसाले ने पेरिस में आयोजित पेरिस ओलंपिक 2024 में पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन इवेंट में कांस्य पदक जीता। क्वालीफिकेशन राउंड में सातवें स्थान पर रहने वाले स्वप्निल ने फाइनल में 451.4 अंक स्कोर कर तीसरा स्थान हासिल किया। स्वप्निल की इस सफलता के पीछे उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष की कहानी है, जो किसी के लिए भी प्रेरणा बन सकती है।
Swapnil Kusale secures a third medal 🥉 for India at #Paris2024 🥳#OlympicsOnJioCinema #OlympicsOnSports18 #JioCinemaSports #Shooting #Cheer4Bharat pic.twitter.com/1EEutHpeUY
— JioCinema (@JioCinema) August 1, 2024
मैने कुछ खाया नहीं है और पेट में गुड़गुड़ हो रही थी। मैंने ब्लैक टी पी और यहां आ गया। हर मैच से पहले रात को मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। आज दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था। मैने श्वास पर नियंत्रण रखा और कुछ अलग करने की कोशिश नहीं की। इस स्तर पर सभी खिलाड़ी एक जैसे होते हैं। मैने स्कोरबोर्ड देखा ही नहीं। यह मेरी बरसों की मेहनत थी और मैं बस यही सोच रहा था। मैं चाहता था कि भारतीय समर्थक मेरी हौसलाअफजाई करते रहें।
जीतने के बाद बोले स्वप्निल कुसाले
कर्ज लेकर सिखाई शूटिंग
शूटिंग एक महंगा खेल है, जहां राइफल और अन्य उपकरणों पर भारी खर्च होता है। स्वप्निल के पिता ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए कर्ज लेकर उसे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। उस समय एक गोली की कीमत 120 रुपये थी, जो उनकी आर्थिक स्थिति के लिए बड़ी चुनौती थी। बावजूद इसके, उन्होंने अपने बेटे को कभी हार मानने नहीं दिया।
माता-पिता का संकल्प और विश्वास
स्वप्निल के माता-पिता ने कभी उनके प्रदर्शन पर शक नहीं किया। उनके पिता, जो एक शिक्षक हैं, ने कहा कि उन्हें विश्वास था कि उनका बेटा देश के लिए पदक जीतेगा। स्वप्निल की मां, जो गांव की सरपंच हैं, ने बताया कि स्वप्निल ने सांगली में पब्लिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान निशानेबाजी में रुचि दिखाई थी और बाद में नासिक जाकर प्रशिक्षण लिया।
धोनी की तरह शांत और संयमित
स्वप्निल कुसाले भारतीय रेलवे में टिकट कलेक्टर के रूप में कार्यरत हैं, बिल्कुल महान क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की तरह। स्वप्निल भी धोनी की तरह शांत और संयमित रहते हैं। महाराष्ट्र के कोल्हापूर के कंबलवाड़ी गांव के निवासी स्वप्निल ने 2012 से अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू किया, लेकिन ओलंपिक में उनका यह पहला पदक है। उन्होंने महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक कई बार देखी और उनसे प्रेरणा ली। उनके पिता और भाई जिला स्कूल में शिक्षक हैं और मां गांव की सरपंच हैं।