दहेज (dowry) एक ऐसी आग जिसमे कई सालों से हमारा देश जलता आ रहा है. कभी किसी के पिता ने तो कभी किसी के भाई ने आत्महत्या तक कर ली है बेटियों के लिए दहेज़ के पैसे जुटाते जुटाते.कहीं कहीं पर तो लोग बहु देखने जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे वो घर के लिए बहु नहीं बल्कि कोई ऐसा प्रोडक्ट देखने किसी की दूकान में आए हैं जो की उनका घर का काम कर सके.
मै एक सच्ची घटना पर आधारित एक कहानी बता रहा हूँ “एक महाशय थे जिनके घर मैं अपने मित्र के साथ गया था. बात चीत से एक सज्जन पुरुष जान पड़ते थे.घर भी ठीक ठाक था.उनके दो पुत्र दोनों सरकारी सर्विस पाए हुए थे.पिता जी का बिज़नेस अच्छा-खासा था ही। पैसे की कोई कमी नहीं थी.।चारों दिशाओं से भर भर के पैसा आ रहा था।
बड़े प्रेम से उन्होंने हम दोनों को बैठाया चाय नाश्ता करवाया यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था लेकिन जैसे ही उन्होंने अपना उद्देश्य प्रकट किया कि मुझे अपने छोटे बेटे के लिए बहू चाहिए मुझे बड़ी ख़ुशी हुई.इसके ठीक बाद उन्होंने कुछ ऐसा कहा की मेरा उनके बारे में जो भी परसेप्शन बना था वो सब ख़त्म हो गया.उन्होंने कहा “मुझे अपने बेटे के लिए लड़की चाहिए जिसकी लम्बाई 5 फुट 4 इंच से कम नहीं होनी चाहिए ,लड़की बीएड की हुई होनी चाहिए और बड़े घर की होनी चाहिए ताकि देनी लेनी अच्छी हो सके।”
तो ये बात रही लड़कियों को पसंद करने की हमारे समाज में सिर्फ इतना ही नहीं मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है अगर कोई लड़की कहती है की हां वो पढ़ी लिखी है तो उससे उसका सबूत माँगा जाता है की “लाओ दिखाओ अपनी मार्कशीट दिखाओ “.इसके बाद जब लड़की को लड़का पसंद लड़के को लड़की पसंद फिर अब बात होती है लेनी देनी की यानि दहेज़ की बदलते समय के साथ दहेज़ का नाम समाज में बदल कर देनी लेनी चलने लगा है.
हाल ही में आई फिल्म लापता लेडीज में एक डायलॉग है की “मोटर साइकिल तो आज कल कॉमन चल रहा है”
आज कल हमारा समाज सोच क्या रहा है.समाज को ये सोचना चाहिए की वो घर में किसी की बेटी ला रहे हैं उसमे भी उन्हें पैसे या उपहार या कुछ भी चाहिए। भारत में दहेज़ के विरुद्ध कानून भी है.अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अनुसार धारा 3 के अनुसार दहेज लेने देने दहेज की मांग करने पर 5 वर्ष तक का कारावास और ₹5000 का जुर्माना हो सकता है।लेकिन हमारे समाज को दहेज़ लेने और देने की ऐसी लत लग चुकी है जो इतनी आसानी से जाती नहीं।
आज के समय में लोगो में यह भी भावना होती है की अगर अपनी बेटी के विवाह में दहेज़ नहीं देंगे तो उन्हें अपने बेटे के विवाह में मांगने का हक़ नहीं रह जाएगा। यह सोच एक गर्त में जाते हुए समाज की निशानी है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत 13,479 मामले दर्ज किए गए। वहीं, 2022 में 6,450 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं।
2022 में दहेज हत्याओं की सबसे अधिक संख्या 2,218 घटनाओं के साथ उत्तर प्रदेश में हुई, इसके बाद बिहार (1,057) और मध्य प्रदेश (518)
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दर्ज मामलों की संख्या में भी उत्तर प्रदेश 4,807 घटनाओं के साथ अग्रणी था। दर्ज किए गए मामलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या बिहार (3,580) में थी, उसके बाद कर्नाटक (2,224) थी।
दक्षिणी राज्यों में दहेज हत्याओं की कुल संख्या 442 थी, जिसमें कर्नाटक (167) अग्रणी था, इसके बाद तेलंगाना (137), तमिलनाडु (29) और केरल (11) थे। इस बीच, दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दक्षिणी राज्यों में दर्ज मामलों की कुल संख्या 2,776 है। कर्नाटक में सबसे अधिक 2,224 घटनाएं हुईं, उसके बाद आंध्र प्रदेश (298), तमिलनाडु (220), केरल (28) और तेलंगाना (6) का स्थान रहा ।
#ये आग कब बुझेगी