मथुरा। वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज को आज के समय में कौन नहीं जानता! देश विदेश से लोग महाराज जी के दर्शन के लिए आते है और बस उनकी एक झलक पाने के लिए घंटों लाइनों में लगे रहते है। वहीं प्रेमानंद महाराज भी जब ब्रह्म मुहुर्त में यमुना स्नान के लिए जाते है तो भक्तों के भावों का बखूबी सम्मान करते है और उनके लिए किए गए भक्तों के परिश्रम को खूब खूब सराहते है और बदलें में इस बात की मनोकामना करते है कि बस ऐसे ही सभी भक्त राधा रानी के नाम का स्मरण करते हुए उस परम आनंद को पा ले और निहाल हो जाए। लेकिन प्रेमानंद महाराज की राधा नाम की भक्ति प्रदान करने वाली ये बाते यहीं समाप्त नहीं होती, वे एकांतिक वार्ता में जिज्ञासु भक्तों के प्रश्नों का उत्तर देते है और साथ ही भक्ति मार्ग में आगे बढ़नें के लिए उनको प्रोत्साहित करते है। जब कोई भक्त महाराज जी से कोई प्रश्न पूछता है तो महाराज जी उसका उत्तर बेहद ही सरल तरीके से देते है ताकि उस भक्त के मन में भगवत् मार्ग से जुड़ी कोई भी शंका शेष न रह जाए। आज हम आपको ऐसी ही एक ऐसी सच्ची कहानी के बारे में बताने वाले है जिसको प्रेमानंद महाराज ने अपने एकांतिक वार्ता में सुनाई है। और ये बताया कि भगवत मार्ग में चलने वालों के लिए हीरा कौन है और उसको पहचानने वाला असली जौहरी कौन?
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महाराज जी ने एकांतिक वार्ता में बताया कि एक बार एक गरीब आदमी कई वर्षों तक एक गुरुजी की सेवा करता रहा, इस बात की उम्मीद करते हुए कि गुरुजी उसे कोई धन देंगे, क्योंकि उन गुरू जी के पास अक्सर ही अमीर लोग आते जाते रहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक दिन उस गरीब आदमी ने गुरुजी से खुलकर अपनी समस्या बताई और उनसे धन की मांग की। जिसके बाद गुरुजी ने उसे एक अमूल्य वस्तु देने का वादा किया और गंगा स्नान करने को कहा।
गंगा स्नान के बाद गुरुजी ने उसे ‘राम नाम’ का जाप करने को कहा। आदमी को लगा कि यह तो कोई खास बात नहीं है क्योंकि गांव के चरवाहे भी आते जाते लोगों को ‘राम राम’ कहते रहते थे। वह फिर से गुरुजी के पास गया और उनसे कुछ ठोस धन संपत्ति की मांग की। गुरुजी ने उसे एक हीरा देकर बाजार में जाने और उसकी कीमत पूछने को कहा।
वह आदमी बाजार में गया और पहले सब्जी वाले के पास हीरे की कीमत पूछी। सब्जी वाले ने हीरे को पत्थर समझकर उसे कुछ सब्जियों के बदले लेने की बात कही। फिर वह बनिया के पास गया, जिसने उसे थोड़ा सा पैसा देने की पेशकश की। वह स्वर्णकार (सोने का व्यापारी) के पास पहुंचा, जिसने उस हीरे की असली कीमत पहचानी और पूरे एक लाख रुपये की पेशकश की। लेकिन सबसे सही कीमत एक जौहरी (हीरे के व्यापारी) ने पहचानी, जिसने बताया कि यह हीरा इतना अनमोल है और पूरी दुनिया में उसकी कोई कीमत ही नहीं दे सकता।
गुरुजी ने तब समझाया कि ‘राम नाम’ का भी वही महत्व है जो इस अनमोल हीरे का है। जैसे हीरे की असली कीमत जौहरी ही जानता है, वैसे ही ‘राम नाम’ की असली कीमत केवल और केवल एक संत ही जानता है। उन्होंने कहा कि ‘राम नाम’ का जाप करने से अपार आनंद प्राप्त होता है, सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, इसके साथ ही मन को अद्भुत शांति मिलती है।
उन्होंने यह भी बताया कि जैसे हमें अपने शरीर से बहुत प्रेम होता है और किसी भी कष्ट को सहन नहीं कर पाते, वैसे ही ‘राम नाम’ की मस्ती में शरीर पुराना कपड़ा जैसा लगने लगता है और उसका महत्व कम हो जाता है। गुरुजी ने इस प्रकार ‘राम नाम’ की अपार महिमा समझाई और बताया कि राम नाम का निरंतर जप करने से जीवन में आनंद की धारा खुल जाती है। आप भीतर से हमेशा के लिए प्रसन्न रहोगे और आपके सभी दुखों, चिंताओं, शोक, भय का नाश हो जाएगा। कलियुग में यह सबसे सशक्त साधन है और कोई दूसरा साधन इसके बराबर नहीं है।
अंत में प्रेमानंद महाराज ने कहानी का सार बताते हुए कहा कि इस कथा में गुरुजी उस गरीब को ये संदेश दे रहे थे कि ‘राम नाम’ का जाप करते रहना चाहिए और इसका महत्व समझना चाहिए, क्योंकि यह जीवन की सबसे अनमोल वस्तु है, जिसका निरंतर जप करने से हमें अद्भुत आनंद और शांति मिलती है।