नई दिल्ली। मासिक कालाष्टमी के पावन दिन पर काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन की गई पूजा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले उपासक इस दिन काल भैरव देव की आराधना करते हैं। आइए जानते हैं कि इस मासिक कालाष्टमी पर कैसे करें काल भैरव को प्रसन्न और पाएं सभी प्रकार के भय से मुक्ति।
कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त (Masik Kalashtami 2024 Muhurat)
आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 28 जून को दोपहर 04 बजकर 27 मिनट से शुरू हो रही है और इसका समापन 29 जून को दोपहर 02 बजकर 19 मिनट पर होगा। कालाष्टमी की पूजा का श्रेष्ठ समय निशिता काल में होता है। इस वर्ष मासिक कालाष्टमी 28 जून, 2024 शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।
भैरव देव को प्रसन्न करने के उपाय
कालाष्टमी पर भैरव देव की कृपा पाने के लिए इन मंत्रों का जाप करें:
- ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि
- ऊं कालभैरवाय नम:
- ॐ ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय। कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा
- ओम भयहरणं च भैरव:
- ॐ ब्रह्म काल भैरवाय फट
इन मंत्रों का जाप करते हुए भैरव देव का ध्यान करें। सच्चे मन से की गई पूजा और मंत्र जाप से आप सभी प्रकार के भय से मुक्त हो सकते हैं और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
काल भैरव अष्टक
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
॥ फल श्रुति॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥
काल भैरव की पूजा के लाभ
काल भैरव की पूजा करने से न केवल भय से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का भी वास होता है। तंत्र-मंत्र की साधना करने वालों के लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनकी साधना को सिद्धि प्रदान करने वाला होता है।
काल भैरव की कथा
यह कहानी उस समय की है जब ब्रह्मांड के सृजन, पालन और संहार के देवताओं में एक बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवताओं में यह तय करने की होड़ लग गई थी कि कौन सबसे बड़ा है। ब्रह्मा जी ने अपनी सृष्टिकर्ता की शक्ति का अहंकार करते हुए कहा, “मैं सबसे बड़ा हूँ, क्योंकि मैं ही इस संसार का सृजन करता हूँ।”
शिव जी यह सुनकर बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने ब्रह्मा जी को उनके अहंकार का सबक सिखाने का निश्चय किया। शिव जी ने अपने तीसरे नेत्र से एक भयंकर, रौद्र रूप का सृजन किया – जिसे काल भैरव कहा जाता है। काल भैरव के उत्पन्न होते ही ब्रह्मांड कांप उठा। उनकी भयानक मुद्रा, काले रंग का शरीर और लाल-लाल आँखें किसी भी सामान्य प्राणी के लिए सहन करना असंभव था।
काल भैरव ने अपने तेज खड्ग से ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया। यह देखकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शिव जी से क्षमा याचना की। लेकिन काल भैरव के क्रोध का शमन करने के लिए शिव जी ने उन्हें काशी (वर्तमान वाराणसी) का अधिपति बना दिया। वहां काल भैरव को नगर रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिससे वे काशी के कोतवाल कहलाए।
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