लोकसभा स्पीकर चुनाव: किसका पलड़ा भारी? जानें पूरा राजनीतिक गणित

News Desk
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नई दिल्ली। लोकसभा स्पीकर पद के चुनाव में सरकार और विपक्ष के बीच मंगलवार को आम-सहमति नहीं बन सकी। अब भाजपा सांसद ओम बिरला का मुकाबला कांग्रेस के कोडिकुन्नील सुरेश से होगा। बिरला ने राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और सुरेश ने विपक्षी गठबंधन इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन किया।

ओम बिरला

राजस्थान के कोटा से तीन बार के सांसद ओम बिरला को लोकसभा में उनके कड़े फैसलों और सक्रियता के लिए जाना जाता है। उन्होंने बतौर सांसद पहले कार्यकाल में 86% उपस्थिति दर्ज करवाई, 671 प्रश्न पूछे और 163 बहसों में हिस्सा लिया। 2019 में दूसरी बार सांसद बनने पर उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। उनके कार्यकाल में नए संसद भवन का निर्माण हुआ और अनुच्छेद 370 को हटाने, नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे ऐतिहासिक कानून भी पारित हुए। बिरला ने लोकसभा के 100 सांसदों के निलंबन और संसद की सुरक्षा पर भी कुछ कड़े फैसले लिए।

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कोडिकुन्नील सुरेश

केरल से आठ बार के सांसद कोडिकुन्नील सुरेश 1989 में पहली बार लोकसभा पहुंचे। 2009 में केरल हाईकोर्ट ने उनके निर्वाचन को अवैध घोषित किया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे बहाल कर दिया। सुरेश के निकटतम प्रतिद्वंद्वी ने उन पर अनुसूचित जाति से होने का फर्जी जाति प्रमाणपत्र लगाने का आरोप लगाया था।

सदन का गणित

लोकसभा में भाजपा समेत राजग के 293 सांसद हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन के पास 233 सदस्य हैं। राहुल गांधी के वायनाड सीट से इस्तीफा देने के बाद सदन में कुल सदस्यों की संख्या 542 रह गई है। फिलहाल सात सांसदों ने लोकसभा की सदस्यता की शपथ नहीं ली है, जिससे यह संख्या 535 रह गई है।

बिरला के नाम दर्ज होगा यह रिकॉर्ड

यदि कोटा से भाजपा सांसद बिरला फिर से लोकसभा अध्यक्ष चुने जाते हैं, तो यह पांचवीं बार होगा कि कोई अध्यक्ष एक लोकसभा से अधिक कार्यकाल तक इस पद पर आसीन रहेगा। कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ ने सातवीं और आठवीं लोकसभा में दो कार्यकाल पूरे किए थे।

मत विभाजन की प्रक्रिया

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के मुताबिक, नए सदन के सदस्यों को अभी सीटें आवंटित नहीं की गई हैं, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले प्रणाली का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। पेश किए गए प्रस्तावों को उसी क्रम में एक-एक करके रखा जाएगा, जिस क्रम में वे प्राप्त हुए हैं। यदि आवश्यक हुआ तो उन पर मत विभाजन के माध्यम से निर्णय लिया जाएगा।

यदि अध्यक्ष के नाम का प्रस्ताव ध्वनिमत से स्वीकृत हो जाता है, तो पीठासीन अधिकारी घोषणा करेंगे कि सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुन लिया गया है और बाद के प्रस्ताव पर मतदान नहीं होगा। यदि विपक्ष मत विभाजन पर जोर देता है, तो वोट कागज की पर्चियों पर डाले जाएंगे, जिससे परिणाम आने में थोड़ा वक्त लगेगा।

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