पिछले चार वर्षों से COVID-19 महामारी ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई है, और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए यह अब भी चिंता का कारण बनी हुई है। इस वायरस में लगातार हो रहे म्यूटेशन की वजह से नए-नए वैरिएंट्स सामने आ रहे हैं, जो वैक्सीन और प्राकृतिक संक्रमण से बनी प्रतिरक्षा को चुनौती दे रहे हैं। टीकाकरण के बावजूद भी संक्रमण का खतरा बना हुआ है। इसीलिए, कुछ विशेषज्ञों ने इन्फ्लूएंजा की तरह हर साल कोविड के टीके देने की मांग की है।
यूनिवर्सल कोविड एंटीबॉडी की खोज
हालांकि, अब वैज्ञानिकों ने कोरोना के नए वैरिएंट्स के खतरे को कम करने की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने यूनिवर्सल कोविड एंटीबॉडी विकसित की है, जो भविष्य में आने वाले कोरोना के सभी वैरिएंट्स के खिलाफ प्रभावी साबित हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एंटीबॉडी सभी प्रकार के सार्स-सीओवी-2 स्ट्रेन से सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का विकास
सार्स-सीओवी-2 वायरस कोविड-19 बीमारी का कारण बनता है और यह लगातार विकसित हो रहा है। वर्तमान वैरिएंट्स आसानी से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देकर संक्रमण फैला रहे हैं। इन जोखिमों को कम करने के लिए टेक्सास बायोमेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अलबामा विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय के साथ मिलकर एक नया ह्यूमन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित किया है, जिसे कोरोना के लगभग सभी वैरिएंट्स के खिलाफ प्रभावी माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह एंटीबॉडी भविष्य में कोरोना के म्यूटेशन से उत्पन्न वैरिएंट्स के खिलाफ भी प्रभावी तरीके से काम कर सकती है।
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मोनोक्लोनल एंटीबॉडी: क्या होती हैं?
एंटीबॉडी मानव प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होती हैं जो वायरस और बैक्टीरिया जैसे बाहरी अवयवों की पहचान कर उनसे बाइंड होती हैं और उन्हें नष्ट करने में मदद करती हैं। ह्यूमन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रयोगशाला में बनाए गए प्रोटीन होते हैं, जो शरीर को स्वयं के एंटीबॉडी बनाने के लिए उत्तेजित करते हैं, जिससे बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
अध्ययनकर्ताओं की राय
टेक्सास बायोमेड के प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता लेखकों में से एक डॉ. लुइस मार्टिनेज-सोब्रिडो ने कहा कि यह एंटीबॉडी मूल सार्स-सीओवी-2 स्ट्रेन, ओमिक्रॉन और कोरोना के अन्य वैरिएंट्स के खिलाफ भी प्रभावी तरीके से काम कर सकती है। अगर इसे अन्य एंटीबॉडीज के साथ जोड़ा जाए तो भविष्य में आने वाले कोरोना के वैरिएंट्स के खिलाफ भी सुरक्षा मिल सकती है।
1301B7 नाम से डिजाइन की गई यह एंटीबॉडी एक रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन एंटीबॉडी है, जिसका अर्थ है कि यह वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करती है, जो संक्रमण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होते हैं।
दो एंटीबॉडी को मिलाने पर अध्ययन
साल 2022 में, शोधकर्ताओं ने एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित की थी। इसके अगले अध्ययन में यह जानने की कोशिश की गई कि दो एंटीबॉडी को एक साथ जोड़ने पर वायरस पर क्या प्रभाव पड़ता है। डॉ. मार्टिनेज बताते हैं कि अब एकल एंटीबॉडी थेरेपी काम नहीं कर रही है, इसलिए हमें इबोला और एचआईवी जैसी अन्य बीमारियों के लिए विकसित की जा रही थेरेपी के समान कुछ नया करने की कोशिश करनी पड़ सकती है।
इस नए अध्ययन की रिपोर्ट काफी आशाजनक हैं। हमें उम्मीद है कि जल्द ही हम कोरोना के नए वैरिएंट्स के खिलाफ प्रभावी तरीका ढूंढ लेंगे। वैज्ञानिकों का यह प्रयास हमें कोविड-19 से लड़ने की नई दिशा दे सकता है और भविष्य में इस महामारी से निपटने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
इस प्रकार, कोरोना वायरस के नए वैरिएंट्स के जोखिम को कम करने की दिशा में वैज्ञानिकों की यह खोज एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है, जिससे हम सभी को राहत मिल सकती है।