नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के निदेशक, दिनेश प्रसाद सकलानी ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जो हमारे देश की पहचान और शिक्षा के संबंध में एक नई दिशा की ओर इशारा करता है। उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में ‘भारत’ और ‘इंडिया’ का परस्पर प्रयोग किया जाएगा, जैसा कि देश के संविधान में है।
यह बहस क्यों महत्वपूर्ण है?
यह बयान ऐसे समय में आया है जब एक उच्च स्तरीय पैनल ने सिफारिश की है कि सभी कक्षाओं की स्कूली पाठ्यपुस्तकों में “इंडिया” के स्थान पर “भारत” शब्द होना चाहिए। यह सिफारिश भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्राचीन मूल्यों को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से की गई है।
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NCERT प्रमुख का बयान
एनसीईआरटी के मुख्यालय में पीटीआई संपादकों के साथ बातचीत में, दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि किताबों में दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाएगा और परिषद को “भारत” या “इंडिया” से कोई परहेज नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया, “यह अदला-बदली योग्य है। हमारा रुख वही है जो हमारा संविधान कहता है और हम उसका समर्थन करते हैं। हम भारत का इस्तेमाल कर सकते हैं, हम इंडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं, इसमें समस्या क्या है? हम इस बहस में नहीं हैं। जहां भी यह उचित होगा हम इंडिया का इस्तेमाल करेंगे, जहां भी यह उचित होगा हम भारत का इस्तेमाल करेंगे। हमें न तो इंडिया से कोई परहेज है और न ही भारत से।”
पैनल की सिफारिशें
सामाजिक विज्ञान की उच्च स्तरीय समिति, जो स्कूल पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए गठित की गई थी, ने पिछले वर्ष सिफारिश की थी कि सभी कक्षाओं की पाठ्यपुस्तकों में “इंडिया” के स्थान पर “भारत” शब्द रखा जाना चाहिए। इस समिति के अध्यक्ष, सी.आई. इसाक ने ये कहा था, कि पाठ्यपुस्तकों में “इंडिया” के स्थान पर “भारत” शब्द रखने, पाठ्यक्रम में “प्राचीन इतिहास” के स्थान पर “शास्त्रीय इतिहास” को शामिल करने तथा सभी विषयों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आई.के.एस.) को शामिल करने का सुझाव दिया है।
भारत का ऐतिहासिक महत्व
सी.आई. इसाक ने पीटीआई-भाषा से कहा, “समिति ने सर्वसम्मति से सिफारिश की है कि सभी कक्षाओं के छात्रों की पाठ्यपुस्तकों में भारत नाम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। भारत एक सदियों पुराना नाम है। भारत नाम का इस्तेमाल प्राचीन ग्रंथों जैसे विष्णु पुराण में किया गया है, जो 7,000 साल पुराना है।”
पिछले वर्ष का आधिकारिक निर्णय
भारत नाम पहली बार आधिकारिक तौर पर पिछले वर्ष सामने आया था, जब सरकार ने जी-20 सम्मेलन के लिए “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” के स्थान पर “प्रेसिडेंट ऑफ भारत” के नाम से आमंत्रण भेजा था। बाद में, नई दिल्ली में शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेमप्लेट पर भी इंडिया के स्थान पर “भारत” लिखा हुआ दिखाई दिया।
अदला-बदली का महत्व
एनसीईआरटी प्रमुख दिनेश प्रसाद सकलानी ने यह भी कहा, “आप देख सकते हैं कि दोनों का प्रयोग हमारी पाठ्यपुस्तकों में पहले से ही किया जा रहा है और नई पाठ्यपुस्तकों में भी यह जारी रहेगा। यह एक बेकार बहस है।” यह बयान स्पष्ट करता है कि एनसीईआरटी दोनों शब्दों का समावेश करके एक संतुलित दृष्टिकोण अपना रही है।
शिक्षा और संस्कृति
इस बहस का मुख्य उद्देश्य भारतीय इतिहास और संस्कृति को सम्मान देना है। शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाकर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि विद्यार्थी अपने देश की गौरवमयी इतिहास और संस्कृति से जुड़े रहें। ‘भारत’ शब्द का उपयोग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो हमारे राष्ट्र की पहचान को और मजबूत बनाता है।
संवैधानिक दृष्टिकोण
इस निर्णय के पीछे का तर्क यह है कि हमारे संविधान में दोनों शब्दों का उपयोग किया गया है और दोनों शब्द हमारे देश की पहचान को दर्शाते हैं। इसलिए, पाठ्यपुस्तकों में दोनों शब्दों का प्रयोग एक संवैधानिक दृष्टिकोण को दर्शाता है और किसी भी प्रकार की भिन्नता को समाप्त करता है।
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