नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आने वाला है। पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख, अखिलेश यादव, यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने का फैसला कर चुके हैं। उन्होंने अपनी पार्टी को संसदीय राजनीति में मुलायम सिंह यादव से भी आगे ले जाकर एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है, और अब वह केंद्र की राजनीति में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।
लोकसभा चुनाव में सपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 33.59% वोट हासिल किए और 37 सीटें जीतीं। खुद अखिलेश यादव ने कन्नौज से भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की है। वर्तमान में वे मैनपुरी की करहल सीट से विधायक हैं और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। लेकिन नियमानुसार, उन्हें इनमें से किसी एक पद को छोड़ना होगा।
अखिलेश यादव के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे अब राष्ट्रीय राजनीति को प्राथमिकता देंगे और विधानसभा से इस्तीफा देकर अपनी लोकसभा सीट पर बने रहेंगे। इस स्थिति में, नेता प्रतिपक्ष का नया चेहरा चुनना होगा।
सपा की रणनीति यह है कि नेता प्रतिपक्ष का पद पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) के किसी विधायक को सौंपा जाए, ताकि पार्टी की रणनीति और मजबूती से लागू हो सके और मतदाताओं को सही संदेश पहुंचाया जा सके। इस पद के लिए अकबरपुर (अम्बेडकरनगर) से सपा विधायक रामअचल राजभर, मंझनपुर (कौशाम्बी) से इंद्रजीत सरोज और कांठ (मुरादाबाद) से सपा विधायक कमाल अख्तर के नाम प्रमुखता से सामने आ रहे हैं। ये तीनों नेता यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं और अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत पकड़ रखते हैं।
अखिलेश यादव की यह नई दिशा सपा को और भी ऊंचाईयों पर ले जाएगी, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यूपी विधानसभा में नया नेता प्रतिपक्ष कौन बनेगा। यह परिवर्तन न सिर्फ सपा बल्कि यूपी की राजनीति में एक नया अध्याय लिखेगा।