
भगवान शिव, जिन्हें देवों के देव महादेव भी कहा जाता है, उनको सोमवार का दिन सबसे ज्यादा प्रिय है। भक्त इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति भाव से विशेष पूजा करते है और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए उनसे कहते है। सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक शिव पुराण में भी इस व्रत की महिमा का वर्णन किया गया है। दरअसल भगवान शिव के उपासकों को शैव कहा जाता है। सामान्यजन भी उनकी पूजा करते हैं, जबकि तंत्र साधक उनके रौद्र रूप काल भैरव की उपासना करते हैं।
सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति भगवान शिव की शरण में आता है, उसे न केवल इस लोक में सुख की प्राप्ति होती है बल्कि मृत्यु के बाद मोक्ष भी प्राप्त होता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव बहुत ही भोले और दयालु हैं। वे केवल फल, फूल, और जल अर्पित करने से प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें ‘भोलेनाथ’ भी कहा जाता है।
भक्त सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा करते है। इन दिनों पूरे देश में शिव मंदिरों में देवों के देव महादेव की पूजा धूम धाम से की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां भगवान शिव अग्नि रूप में उपस्थित रहते हैं? जी हां हमारे देश में वैसे तो भगवान भोलेनाथ बहुत ही साधारण स्वरूप में रहते है लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने वाले है उस मंदिर में भगवान शिव का अग्नि रूप देखने को मिलता है, जो उस मंदिर के पीछे की पौराणिक कथा को बताती है।
बताते है कि एक बार, जगत के पालनहार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच श्रेष्ठता को लेकर मतभेद हो गया। ब्रह्मा जी स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे, जबकि विष्णु जी स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे। इस विवाद से सभी देवी-देवता परेशान हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी औऱ विष्णु जी को देवों के देव महादेव के पास जाने का सुझाव दिया।
सुझाव दोनो को अच्छा लगा औऱ वे दोनों, भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी कैलाश पहुंचे और महादेव से अपने विवाद का समाधान करने की प्रार्थना की। जिस पर भगवान शिव ने उत्तर देते हुए कहा कि ” भगवान विष्णु अपनी जगह पर श्रेष्ठ हैं और ब्रह्मा जी अपनी जगह पर श्रेष्ठ हैं। लेकिन दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों इस विवाद का समाधान चाहते थे कि दोनों में श्रेष्ठ आखिर है कौन?
शिव जी ने कहा ठीक है, “मेरे तेजोमय शरीर से एक ज्योत का उद्गम होगा, जो नभ और पाताल की तरफ बढ़ेगी। आप दोनों में से जो इस ज्योत के शीर्ष या शून्य स्तर तक पहुंच जाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।” ब्रह्मा जी हंस पर सवार होकर नभ की तरफ बढ़े और विष्णु जी वराह बन कर पाताल की तरफ गए।
दोनों ने बहुत प्रयास किया लेकिन ज्योत का अंत नहीं मिला। विष्णु जी ने असफलता स्वीकार की और कहा, “हे महादेव! आपकी लीला को समझना मुश्किल है, इसमें अवश्य ही कोई रहस्य है।” भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए उनकी सत्यता की प्रशंसा की।
हालांकि, ब्रह्मा जी ने झूठ बोलते हुए कहा कि उन्होंने नभ में ज्योत का अंत देखा। झूठ सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और बोले, “आप असत्य जानकारी दे रहे हैं।” उन्होंने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने शिव जी पर कई आरोप लगाए जिससे शिव जी क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से काल भैरव का अवतरण हुआ। तब से भगवान शिव के दर्शन यहां अग्नि रूप में मिलते है।
बता दें कि आज के समय में यह मंदिर तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से स्थित है। इसे अन्नामलाईयर मंदिर भी कहा जाता है। शैव समाज के अनुयायियों के लिए ये मंदिर केदारनाथ मंदिर के जितना पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां पंच तत्वों की पूजा की जाती है और उनमें अग्नि तत्व की पूजा मुख्य रूप से होती है। बता दें कि मंदिर में प्रतिदिन 6 बार पूजा और आरती होती है। कार्तिक पूर्णिमा और मासिक कार्तिगई दीपम पर्व पर विशेष दीपदान किया जाता है।
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