जेन्नी इर्पनबैक(Jenny Erpenback) ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार(The Booker Prize) 2024 अपने नाम किया। उन्हें अपनी नोवल ‘कैरोज (Kairos)‘ के लिए यह पुरस्कार मिला। वह पहली जर्मन लेखिका हैं ,जिन्हें यह पुरस्कार मिला है। इसे माइकल हॉफमैन(Michael Hofmann) ने अंग्रेजी में अनुवादित किया है। इस वितरण समारोह का आयोजन Tate modern, London में हुआ। यह पुरस्कार अंग्रेजी साहित्य में लिखे गए फिक्शन रचना को मिलता है।
कैरोज (Kairos)‘ में उन्होंने जर्मनी की बर्लिन दीवार के विभाजन को बड़े ही मार्मिक तरीके से एक प्रेम कथा के माध्यम से बताया है। वह जर्मनी की जानी-मानी लेखिका हैं। उनका कहना है कि उन्हें कोई आश्चर्य नहीं है कि वह बुकर प्राइज जीत चुकी हैं। उनका कहना है कि यह किताब जर्मनी में लगभग सभी को पसंद आई थी। पिछले साल यह पुरस्कार जाॅर्जी गाॅस्पोडनोव को ‘टाइम शेल्टर(Time shelter)’ के लिए मिला था।⁶
बुकर पुरस्कार( The Booker prize )का उद्देश्य
बुकर पुरस्कार का उद्देश्य होता है कि यह फिक्शन में लिखे गए साहित्य को पूरी दुनिया तक पहुँचाये। आज के वैश्विक परिदृश्य में अंग्रेजी एक यूनिवर्सल भाषा बन चुका है। ऐसे में इसे अंग्रेजी में अनुवादित करने का उद्देश्य यह है कि यह सभी के पास अपनी कहानी को बयां कर सके।
क्या अंतर है बुकर पुरस्कार(Booker Prize) और अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार(International Booker Prize)में
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार वार्षिक तौर पर यू.के. तथा आयरलैंड में प्रकाशित पुस्तक के लिए प्रदान किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की शुरुआत 2005 में ‘मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार‘ के तौर पर हुई। पहले यह साल में दो बार आयोजित किया जाता था। यह किसी भी साहित्य के लिए दिया जाता था, चाहे अंग्रेजी7 या किसी भाषा में लिखा गया हो। इसलिए मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के शुरुआती विजेताओं में Alice Munro,लिडिया डेविस,फिलिप रोथ,लास्जज़लो क्राॅस्ज़नाहोकाई और इस्माइल क़ादरो शामिल हैं।
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साल 2015 में इसके नियमों में बदलाव किये गये। अब इसे किसी भी देश के लेखकों को दिया जा सकता था। लेकिन शर्त यह थी कि किताबें अंग्रेजी में हो और यूके और आयरलैंड में प्रकाशित हो। इसमें कोई प्रतिबंध नहीं है कि किताबें चाहे ट्रांसलेटेड ही क्यों ना हो।
2019 में जब क्रैंकस्टार्ट फंडर बन गए, तब दोनों पुरस्कार को मिलाकर बुकर पुरस्कार(The Booker prize) नाम कर दिया गया । इस तरह से बुकर पुरस्कार और अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार ,जिसे मैन बुकर पुरस्कार भी कहा जाता है, दोनों एक ही है।
बुकर पुरस्कार के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- इसे केवल अंग्रेजी साहित्य के लिए दिया जाता है।
- यह पुरस्कार एकल कथा साहित्य(Single fiction book) के लिए दिया जाने वाला विश्व का टॉप साहित्यिक पुरस्कार है। यह प्रत्येक वर्ष आयोजित होता है।
- सबसे पहले बुकर पुरस्कार (Booker Prize) को बुकर मैककॉनेल (Booker McConnell) ने स्थापित किया था। टॉम मैशलर (Tom Maschler)और ग्राहम सी जीनी (Graham C. Geene) इस आईडिया को लेकर आयें।
- सबसे पहले बुकर प्राइज सन 1969 में मिला था। पी.एच.न्यूबी को उनकी नोवेल ‘समथिंग टू आंसर फॉर (Something to answer for) ‘ के लिए यह पुरस्कार मिला।
- 1976 में बीबीसी ने पहली बार पुरस्कार वितरण समारोह का टीवी पर प्रसारण किया था। इसके बाद से इस पुरस्कार की चर्चा और भी बढ़ने लगी।
- बुकर पुरस्कार को जीतने वाला व्यक्ति नोबेल पुरस्कार के लिए भी एलिजिबल हो जाता है।
भारतीयों द्वारा जीते गए पुरस्कार(Booker Prize)
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बुकर पुरस्कार किसी भी लेखक की जिंदगी को बदल सकता है। अब तक यह खिताब निम्न भारतीय लेखकों को मिल चुका है।
- वीएस नायपॉल ने 1971 में पहला Booker Prize जीता था। उनकी नोवल ‘इन ए फ्री स्टेट’ तीन कहानियों का संग्रह थी। इसमें पोस्ट कॉलोनियल माइंडसेट के साथ आशा और प्रेरणा का वर्णन किया गया है।
- सलमान रश्दे ने 1981 में यह पुरस्कार जीता। यह पुरस्कार उन्हें उनकी नोबेल ‘मिडनाइटस चिल्ड्रन‘ के लिए दिया गया। यह नोवल सलीम सिने नाम के पात्र पर आधारित है।यह तिलिस्मी कहानी(magical epic) है। इस पात्र के माध्यम से भारत की आजादी के बाद के इतिहास को दिखाया गया है। इस नोवेल को और भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
- अरुंधति रॉय ने 1997 में ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स‘ पर यह पुरस्कार जीता। यह नोवल दो बच्चों की कहानी पर आधारित है। उन्हें बड़े होने पर जाति, वर्ण, लिंग और चिल्ड्रेन ट्रामा का सामना करना पड़ता है।
- किरन देसाई ने 2006 में ‘द इनहेरिटेंस ऑफ़ लॉस‘ पर बुकर पुरस्कार( Booker prize) जीता था। यह उपन्यास भारत और नेपाल के बीच गोरखनाथ आंदोलन की पृष्ठ भूमि पर बना है। एक रिटायर्ड जज पर यह कहानी आधारित है,जो कि दार्जिलिंग में रहता है।
- अरविंद अडिग ने 2008 में ‘द व्हाइट टाइगर’ के लिए Booker पुरस्कार जीता। यह उपन्यास एक नौजवान की कहानी पर आधारित है। वह एक छोटे से गांव से निकलकर एक भ्रष्ट समाज में आता है। कहानी भारत के निम्न वर्ग के संघर्षों को भी दर्शाती है
- 2022 में पुरस्कार ‘टॉम्ब ऑफ़ सैंड ‘(रेत की समाधि) को मिला। इसे गीतांजलि श्री ने लिखा था। यह किताब एक 80 वर्ष की दादी की कहानी है। वह विधवा हैं। वह खटिया पकड़ चुकी हैं। ऐसे में एक संयुक्त परिवार में किस प्रकार का दृश्य होता है। इसे खूबसूरती से दर्शाने की कोशिश की है। इसकी ट्रांसलेटर डेजी राकवेल हैं।
पुरस्कार(Booker prize) में मिलने वाला सम्मान
पुरस्कार के विजेता को ट्रॉफी और 50000 यूरो दिए जाते हैं। इस पुरस्कार राशि को आधा-आधा ट्रांसलेटर और लेखक के बीच बाँटा जाता है। 2500 यूरो शॉर्ट लिस्टेड लेखक को दिए जाते हैं। इसके अलावा विजेता और शॉर्ट लिस्टेड लेखक को उनकी किताब के लिए रीडरशिप मिलती है। साथ ही उनके बुक की सेल्स में बढ़ोतरी भी होती है।
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