
कोरोना महामारी के दौर में वैक्सीन ने जहां एक ओर जीवन को बचाने का काम किया, वहीं दूसरी ओर इसके दुष्प्रभावों को लेकर भी चर्चाएं होती रहीं। इसी बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 28 लोगों के खिलाफ दाखिल एक प्रार्थना पत्र पर शनिवार को सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक व एमपी-एमएलए) प्रशांत कुमार सिंह की अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने यह कहते हुए प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया कि यह सुनवाई योग्य नहीं है।
अदालत का निर्णय
अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री और अन्य 28 लोगों के विरुद्ध कोई भी विधिक कार्यवाही करने से पहले अभियोजन स्वीकृति अनिवार्य है। परिवादी विकास सिंह द्वारा ऐसी कोई अभियोजन स्वीकृति प्रस्तुत नहीं की गई थी, इसलिए प्रार्थना पत्र सुनवाई योग्य (पोषणीय) नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।
आरोप और दावे
विकास सिंह ने अपने प्रार्थना पत्र में गंभीर आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि सीरम इंस्टीट्यूट ने कोरोना का भय दिखाकर कोविशील्ड वैक्सीन बिना पर्याप्त परीक्षण के लोगों को लगवाई और इससे भारी लाभ अर्जित किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस लाभ का हिस्सा प्रधानमंत्री को चंदा के रूप में दिया गया। विकास सिंह ने पीएम समेत सभी 28 लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने और पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिलाने की मांग की थी।
वैक्सीन के दुष्प्रभावों पर चिंता
कोरोना महामारी के समय वैक्सीन ने जहां एक ओर लाखों लोगों की जान बचाई, वहीं इसके दुष्प्रभावों को लेकर कई लोगों में चिंता बनी रही। कई लोग वैक्सीन के बाद स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे, जिससे उनके परिवारों में निराशा और गुस्सा था। विकास सिंह का मामला भी इसी भावना का प्रतीक था, जहां उन्होंने न्याय की उम्मीद में अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
वैक्सीन की महत्वपूर्ण भूमिका
वैक्सीन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। कोरोना की लहर के दौरान, जब अस्पतालों में बेड की कमी हो रही थी और लोग ऑक्सीजन के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब वैक्सीन ने एक रक्षा कवच की तरह काम किया। लाखों लोगों को इस महामारी से बचाने में वैक्सीन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अदालत का न्यायिक दृष्टिकोण
अदालत ने अपने निर्णय में न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया और यह सुनिश्चित किया कि बिना अभियोजन स्वीकृति के कोई भी कानूनी कार्यवाही न हो। यह निर्णय न्यायिक प्रणाली की मजबूती और निष्पक्षता को दर्शाता है। हालांकि, इस निर्णय से उन लोगों में निराशा हो सकती है जो वैक्सीन के दुष्प्रभावों से पीड़ित थे और न्याय की उम्मीद कर रहे थे।
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सरकार का दृष्टिकोण
सरकार ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी हो। सभी परीक्षण और प्रमाणिकता को ध्यान में रखते हुए वैक्सीन को मंजूरी दी गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद आगे आकर वैक्सीन की जरूरत और महत्व को समझाया और लोगों को इसे लेने के लिए प्रेरित किया।
वैक्सीन और लाभ
विकास सिंह ने आरोप लगाया था कि सीरम इंस्टीट्यूट ने लाभ अर्जित करने के लिए वैक्सीन को बिना पर्याप्त परीक्षण के लॉन्च किया। हालांकि, सीरम इंस्टीट्यूट ने हमेशा यह दावा किया कि उनकी वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी है और इसे सभी आवश्यक परीक्षणों और प्रमाणन के बाद ही लॉन्च किया गया था।
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न्याय की उम्मीद
इस मामले से यह स्पष्ट होता है कि लोग न्याय की उम्मीद में अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, चाहे उनका मामला कितना भी कठिन क्यों न हो। विकास सिंह ने भी इसी उम्मीद के साथ यह प्रार्थना पत्र दाखिल किया था। हालांकि, अदालत ने इसे सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया।
वैक्सीन के दुष्प्रभावों से पीड़ित लोगों की उम्मीदें
वैक्सीन के दुष्प्रभावों से पीड़ित लोगों के लिए यह मामला एक उम्मीद की किरण था। हालांकि, अदालत के इस निर्णय से उन्हें निराशा हो सकती है, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि न्यायिक प्रक्रिया अपने नियमों और कानूनों के आधार पर चलती है।
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