एक ऐसा शख्स जिसके आगे झुकती थी सरकारें। जो पूरे राज्य के राजनीतिक समीकरण को बनाने और बिगाड़ने की हिम्मत रखता था। उस शख्स का खौफ ऐसा कि चाहे किसी की सरकार हो राज तो सिर्फ वो अकेला ही करता था। कोई भी सरकार हो या पुलिस उसके दरवाजे पर बिना मत्था टेके, आगे नहीं बढ़ती थे। जिसका काला कारोबार ऐसा कि जो अस्लाहें सेना के पास तक नहीं होते थे, उसकी खेफे इस शख्स के घर से निकलती थी। अपराध की दुनिया के बड़े बड़े सूरमा उस शख्स से पंगा लेने से पहले 100 बार सोचते थे। जो अपराध के समंदर का बेताज बादशाह था, जिसका नाम सुनकर लोगों की रूह कांप उठती थी। वो किसी के लिए मसीहा था तो किसी के लिए आदमखोर माफिया।
चलिए आज हम आपको बताते है राजनीति और सत्ता के मुखौटे के पीछे छिपी सच्चाई जिसकी आड़ में न जाने कितने अपराधी पलते है। राजनीतिक साजिशों और घोटालों से भरी दुनिया में एक नाम सबसे ऊपर कहा और सुना जाता था जो अपने विवादास्पद अतीत और आपराधिक संबंधों के लिए मशहूर था, और जिसके जीवन की कहानी किसी ब्लॉकबस्टर थ्रिलर से कम नहीं है।हम बात कर रहे है उत्तरप्रदेश के मऊ से 5 बार के सांसद और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की।
राजनीतिक चर्चाएं हो या आपराधों की फहरिस्त मुख्तार अंसारी का नाम इन दोनों में टॉप पर आता है। कथित आपराधिक गतिविधियों से लेकर राजनीतिक सत्ता के खेल तक, मुख्तार अंसारी को सब कुछ मिला.लेकिन जरा रूकिए, पहले आइए थोड़ा पीछे मुड़ें और देखें कि आखिर मुख्तार अंसारी अपराध की दुनिया का सरगना कैसे बना, ये सब कैसे, कहां से और क्यूं शुरू हुआ? चलिए जानते है मुख्तार अंसारी के जीवन के बारे में.
मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के यूसुफ़पुर में एक राजनैतिक परिवार में हुआ था। मुख़्तार अंसारी के दादा डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी एक स्वतंत्रता सेनानी थे जो बाद में 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी रहे., और नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 1947 की लड़ाई में शहीद हो गए जिन्हें बाद में महावीर चक्र से नवाज़ा गया था । मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी गाजीपुर में अपनी साफ सुधरी छवि के साथ राजनीति में सक्रिय रहे थे। और भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख़्तार अंसारी के चाचा लगते थे। मुख्तार अंसारी की शुरुआती पढ़ाई युसुफपुर गांव में हुई। इसके बाद उसने गाजीपुर कॉलेज से स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई पूरी की।
25 अक्तूबर 1988 में आजमगढ़ के ढकवा के संजय प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना सिंह ने मुख्तार अंसारी सहित सात लोगों के खिलाफ कैंट थाने में हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। इसके अलावा1988 में ही मुख्तार अंसारी का नाम एक हत्या के मामले में सामने आया। मुख्तार अंसारी पर मंडी परिषद के ठेके के मामले में एक लोकल ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या के आरोप लगे थे। इतना ही नहीं इसी दौरान पुलिस से बचते हुए एक कॉन्स्टेबल की हत्या के आरोप भी मुख्तार अंसारी पर लगे लेकिन पुलिस को उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। इसके बाद तो जैसे आए दिन मुख्तार अंसारी के अपराध से जुड़ने की खबरे आने लगी।
इस घटनाओं के बाद मुख्तार के घरवाले भी परेशान हो गए थे। परेशान होकर उन्होंने 1989 में मुख्तार की शादी करा दी। परिवार को लगा था कि शादी के बाद मुख्तार सुधर जाएगा, लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। मुख्तार अपराध की दुनिया में कदम रख चुका था और परिवार के रसूख के चलते उसका दबदबा भी बनने लगा। एक समय ऐसा आया कि मुगलसराय की कोयला मंडी, आजमगढ़, बलिया, भदोही, बनारस से लेकर झारखंड और बिहार तक की शराब तस्करी, स्क्रैप का कारोबार, रेलवे के ठेके से लेकर बालू के पट्टे तक मुख्तार गैंग के गोरख धंधों में शामिल थे।
कहा जाता है कि एक तरफ मुख्तार अंसारी और उसकी गैंग अंडरग्राउंड होकर जमीन कब्जा, शराब के ठेके, रेलवे ठेकेदारी, खनन, रंगदारी जैसे कई अवैधानिक कामों के जरिए पैसा बना रही थी, तो दूसरी ओर वो आम गरीब जनता की मदद करके अपनी छवि सुधारने का भी काम कर रहा था। यही मुख्तार का राजनीति में कदम रखने का प्लान था। इसी के सहारे उसने 1996 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर मऊ सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा औऱ जीत दर्ज की। यहीं से मुख्तार का सियासत में कदम मजबूत होने लगा।
और इस तरह मुख्तार मऊ से पांच बार का लगातार विधायक चुना गया। इसके बाद 2012 में मुख्तार अंसारी ने कौमी एकता दल के नाम से एक नई पार्टी बनाई और इसी पार्टी से विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। 1988 में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले मुख्तार ने 1996 में सियासत की सीढ़ी चढ़नी शुरू कर दी। लेकिन इस बीच, उसने अपने पुराने कामों को बंद नहीं किया। वह अपराध की जगत का बड़ा नाम था और सियासत के जरिए गरीबों के मददगार होने का ढोंग करता रहा।
साल 2005 में मुहम्मदाबाद सीट से एक और किस्सा शुरू हुआ, दरअसल 1985 से ये सीट अंसारी परिवार के पास रही है और उस वक्त मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी इससे चुनाव लड़ रहे थे। 2002 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को यहां से चुनाव में मात दी। कहते हैं ये बात मुख्तार अंसारी को नागवार गुजरी और कृष्णानंद राय, मुख्तार अंसारी के निशाने पर आए गए।
2005 में मऊ में हिंसा भड़काने का आरोप मुख्तार पर लगा जिसके बाद उसने बड़ी ही चालाकी से इस मामले में गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया।क्यूंकि उसकी नियत में कुछ और ही था। मुख्तार के जेल में रहते हुए बाहर एक ऐसा खेल खेला गया जिसका मास्टरमाइंड होने का आरोप मुख्तार अंसारी पर ही लगा।
29 नवंबर 2005 को एक आयोजन से लौटते वक्त विधायक कृष्णानंद राय के काफिले पर एके-47 से हमला हुआ जिसमें 500 राउंड की फायरिंग की गई। जिसमें कृष्णानंद समेत पांच लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। कहा जाता है कि जेल में रहकर ही मुख्तार अंसारी ने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी और अतीक उर रहमान की मदद से कृष्णानंद की हत्या करवाई थी।
इस तरह मुख्तार के खिलाफ ग़ाजीपुर ज़िले के मुहम्मदाबाद थाने में करीब 65 आपराधिक मुकदमें दर्ज थे। इसके अलावा मकोका जैसे क्राइम ऐक्ट और गैंगस्टर ऐक्ट के तहत भी कई मामलों में मुख्तार पर थे. कुछ अहम मामलों मेंअदालत ने सबूतों की कमी, गवाहों के पलट जाने और सरकारी वकील की कमज़ोर पैरवी के कारण मुख्तार को बरी कर दिया।
मुख्तार को सितंबर 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट एक जेलर को धमकाने के मामले में सात साल की सज़ा सुनाई थी. इसके बाद 1999 के एक मामले में गैंगस्टर एक्ट के तहत मुख्तार अंसारी को पांच साल सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई और पिछले साल अप्रैल में मुख़्तार अंसारी को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्या मामले में 10 साल की सज़ा सुनाई गई थी.
दरअसल मुख्तार अंसारी 2005 के बाद से ही अलग-अलग जेलों में बंद रहा। इसी बीच पंजाब के रोपड़ जेल में मुख्तार को वीआईपी ट्रीटमेंट देने की खबरें भी सामने आईं थीं। कहा जाता था कि खुद डीएम, एसपी समेत कई जेल अधिकारी मुख्तार अंसारी की तीमारदारी में लगे रहते थे। इसके बाद साल 2021 में मुख्तार को उत्तर प्रदेश की पुलिस बंदा जेल लेकर आया गया. तबसे वो यहीं पर बंद था.
जेलवास के दौरान पिछले साल मुख्तार ने अपने छोटे बेटे उमर अंसारी को स्लो प्यॉयजन देकर जान से मारे जाने का खतरा भी बताया था। जिसके बाद उमर अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।29मार्च 2024 को मुख्तार अंसारी की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। मौत के साथ ही कई राज्यों तक फैला मुख्तार के आंतक का साम्राज्य ढ़ह गया और पूर्वांचल के आंचल में दशकों से लगा काला धब्बा धुल गया। कहते है न जब आतंक का साम्राज्य रावण का ही नहीं बचा तो फिर बाकियों की गिनती कौन करें। बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है।